माँ दुर्गा के पहले रूप को 'शैलपुत्री' के नाम से जाना जाता है। पर्वत राज हिमालय के यहां उनकी पुत्री के रूप में उत्पत्ति होने के कारण उनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। वृषभ पर स्थित इन माता जी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं।
।। देवी शैलपुत्री जी की आरती ।।
शैलपुत्री मां बैल असवार ।
करें देवता जय जय कार ।।
शिव शंकर की प्रिय भवानी।
तेरी महिमा किसी ने न जानी।।
पार्वती तू उमा कहलावे ।
जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें।।
रिद्धि सिद्धि परवान करें तू।
दया करे धनवान करे तू।।
सोमवार को शिव संग प्यारी।
आरती जिस ने तेरी उतारी।।
उसकी सगरी आस पुजा दो।
सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो।।
घी का सुंदर दीप जला के।
गोला गरी का भोग लगा के।।
श्रद्धा भाव से मंत्र जपाये।
प्रेम सहित फिर शीश झुकायें।।
जय गिरराज किशोरी अम्बे।
शिव मुख चंद्र चकोरी अम्बे।।
मनोकामना पूर्ण कर दो।
भक्त सदा सुख संपति भर दो।।
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