धर्मराज जी की आरती - Dharmraj Ji Ki Aarti

धर्मराज जी की आरती: कार्तिक माह की नरक चतुर्दशी और यम द्वितीया के अवसर पर धर्मराज यानी "यमराज" की पूजा की जाती है, जिसके बाद उनकी आरती की जाती है। वट सावित्री व्रत के दौरान भी धर्मराज की पूजा और आरती की जाती है।

यमराज जी की आरती - Yamraj Ji Ki Aarti

धर्मराज कर सिद्ध काज प्रभु में शरणागत हूं तेरी।
पड़ी नव मंज धार भवन में पार करो ना करो देरी।
धर्मलोक के तुम हो स्वामी श्री यमराज कहलाते हो।
जो जो प्राणी कर्म करते तुम सब लिखते जाते हो।
अंत समय में तुम सबको दूत भेज बुलवाते हो।
पाप पुण्य का सारा लेखा उनको बांच सुनाते हो।
भुगताते हो प्राणी को तुम लख चौरासी की फेरी से।
धर्मराज कर सिद्ध काज प्रभु में शरणागत हु तेरी।
पड़ी नव मंज धार भवन में पार करो ना करो देरी।।१।।

चित्रगुप्त है लेखक तुम्हारे फुर्ती से तो लिखने वाले।
अलग अलग से सब जीवों का लेखा जोखा लेने वाले।
पापी जन को पकड़ बुलाते नरकों में ढाने वाले।
बुरे काम करने वालों को खूब सजा तो देने वाले ।।
कोई नहीं तुमसे बच पाता, यह न्याय नीति ऐसी तेरी।
धर्मराज कर सिद्ध काज प्रभु में शरणागत हूं तेरी।
पड़ी नव मंज धार भवन में पार करो ना करो देरी।।२।।

दूत भयंकर तेरे स्वामी बड़े बड़े डर जाते हैं।
पापी जन तो जिन्हें देखते वे भय से थर्राते हैं।
बांध गले में रस्सी वे पापी जन को ले जाते हैं।
चाबुक मार लाते जरा रहम नहीं मन में लाते हैं।
धर्मराज कर सिद्ध काज प्रभु में शरणागत हूं तेरी।
पड़ी नव मंज धार भवन में पार करो ना करो देरी।।३।।

धर्मी जन को धर्मराज तुम खुद ही लेने आते हो।
सादर ले जाकर उनको तुम स्वर्गधाम पहुंचाते हो।
जो जन पाप कपट से डरकर तेरी भक्ति करते हैं।
नर्क यातना कभी ने पाते भवसागर से तरते हैं।
कपिल मोहन पर कृपा करके जपती हूं में माला तेरी।
धर्मराज कर सिद्ध काज प्रभु में शरणागत हूं तेरी।
पड़ी नव मंज धार भवन में पार करो ना करो देरी।।४।।
।। इति यमराज जी की आरती ।।

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