माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। उनका शरीर काला है, सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। उनके तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह गोल हैं और उनसे विद्युत की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं।
कालरात्रि की नासिका से अग्नि की ज्वालाएं निकलती रहती हैं और उनका वाहन गर्दभ है। वे अपने एक हाथ से वरमुद्रा में सभी को वर प्रदान करती हैं और दूसरे हाथ से अभयमुद्रा में सभी को सुरक्षा प्रदान करती हैं। उनके अन्य दो हाथों में लोहे का कांटा और खड्ग है।
माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में भयानक है, लेकिन वे सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण से उनका एक नाम 'शुभंकरी' भी है।
आरती कालरात्रि माता की
कालरात्रि जय जय महाकाली ।
काल के मुंह से बचाने वाली ॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा ।
महाचंडी तेरा अवतारा ॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा ॥
खङ्ग खप्पर रखने वाली ।
दुष्टों का लहू चखने वाली ॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा ।
सब जगह देखूं तेरा नजारा ॥
सभी देवता सब नर-नारी ।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी ॥
रक्तदन्ता और अन्नपूर्णा ।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना ॥
ना कोई चिंता रहे ना बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी ॥
उस पर कभी कष्ट ना आवे ।
महाकाली माँ जिसे बचावे ॥
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि माँ तेरी जय ॥
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