माता कात्यायनी की आरती

माँ दुर्गाजी का छठा स्वरूप कात्यायनी है, जिसका नाम महर्षि कात्यायन के नाम पर पड़ा। महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की तपस्या की थी और माँ भगवती ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली थी। जब महिषासुर का अत्याचार बढ़ गया, तो तीनों देवताओं ने मिलकर एक देवी को उत्पन्न किया, जिसकी पूजा महर्षि कात्यायन ने सबसे पहले की। इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलाई।

आरती कात्यायनी माता की

जय जय अम्बे जय कात्यायनी ।
जय जग माता जग की महारानी ॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारा ।
वहावर दाती नाम पुकारा ॥

कई नाम है कई धाम है।
यह स्थान भी तो सुखधाम है ॥
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी ।
कही योगेश्वरी महिमा न्यारी ॥

हर जगह उत्सव होते रहते ।
हर मन्दिर में भगत है कहते ॥
कत्यानी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की ॥

झूठे मोह से छुडाने वाली ।
अपना नाम जपाने वाली ॥
बृहस्पतिवार को पूजा करिए।
ध्यान कात्यानी का धरिये ॥

हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी ॥
जो भी माँ को भक्त पुकारे ।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे ॥

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