हरतालिका तीज व्रत में जल क्यों नहीं पिया जाता | Nirjala Vrat Ka Rahasya in Hindi

🌿 हरतालिका तीज व्रत में जल क्यों नहीं पिया जाता | Nirjala Vrat Ka Rahasya

हरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में महिलाओं द्वारा रखा जाने वाला एक अत्यंत कठिन और पवित्र व्रत है। यह व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है और इसे निर्जला व्रत कहा जाता है — यानी इस दिन जल तक ग्रहण नहीं किया जाता

🔍 निर्जला व्रत क्यों रखा जाता है?

इस व्रत का उद्देश्य केवल शरीर को तपाना नहीं, बल्कि मन, वाणी और इंद्रियों पर संयम रखना है। जल न पीने का नियम आत्मसंयम और तपस्या का प्रतीक है।

📖 पौराणिक कारण:

मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था। उन्होंने कई वर्षों तक बिना अन्न और जल के उपवास रखा। उसी तपस्या की स्मृति में यह व्रत रखा जाता है।

हरतालिका शब्द दो भागों से बना है — ‘हरत’ यानी हरण करना और ‘आलिका’ यानी सखी। कथा के अनुसार, माता पार्वती की सखियों ने उन्हें विवाह से बचाने के लिए वन में ले जाकर छिपा दिया था, जहाँ उन्होंने शिव को पाने के लिए यह कठिन व्रत किया।

🌙 व्रत की विशेषताएं:

  • यह व्रत निर्जला और निराहार होता है
  • पूरी रात जागरण और भजन-कीर्तन किया जाता है
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद पूजन और पारण के साथ व्रत पूर्ण होता है

💡 आध्यात्मिक दृष्टिकोण:

जल न पीना केवल शारीरिक तपस्या नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि का प्रतीक है। यह व्रत स्त्रियों को धैर्य, श्रद्धा और समर्पण की भावना से जोड़ता है।

📌 क्या सभी को निर्जला व्रत रखना चाहिए?

यदि स्वास्थ्य अनुमति न दे, तो फलाहार या केवल जल ग्रहण कर व्रत किया जा सकता है। कई स्थानों पर अनुमति अनुसार लचीले नियम भी अपनाए जाते हैं।


📜 Disclaimer: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक जानकारी देना है। पाठकों से अनुरोध है कि किसी विशेष व्रत या नियम को अपनाने से पहले अपने स्वास्थ्य, उम्र और परिस्थिति के अनुसार योग्य विद्वान या चिकित्सक से परामर्श लें।

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